गौशाला में घास डालने
वो घस्यारन आई थी
पतली कमर और बाली उमर
जो उसने सृष्टी से पायी थी
व्याकुल हो आया ये मन
ऐसी वह परछाई थी
मन ही मन एक आह उठी
जो उसने ली अंगडाई थी
शब्दों की उस किल्लत में
खुद को असहाय पाया मैंने
आँखों की एक झलक दिखाकर
हल्का सा मुस्काया मैंने
पलकों पर एक रोष लिए
वो पलट कर भागी थी
परन्तु जाते जाते अचानक
मुढ़कर वो मुस्काई थी
गौशाला में घास डालने
हाय !! वो घस्यारन आई थी
No comments:
Post a Comment