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Tuesday 30 October 2012

एक तितली ! ... Entry by Vinay Gatagat, XIME Bangalore


एक तितली  की जैसी थी वह

नाज़ुक  से  पंख उसके ,
नटखट से पैरों वाली ….

अपने  घोंसले मैं  खुश  रहती  थी  वह ,
जामने  से  उसका  कोई  वास्ता    कोई  ख्वाइश

मासूम  सी  नज़रों  से  करती  थी  वह ,
उनके  आने  का  इंतज़ार

वक़्त  जैसे  थमा  सा था  उसकी  नज़रों  मैं,
और  आहटों  का    कोई  हिसाब  किताब

एक तितली  की जैसी थी वह

अपनी  ख्वाहिशों  को  पूरा  करने ,
खुला  छोड़ दिया  हैं  अब  उसको

एक  डोर  के  सहारे  ज़िन्दगी  से  मुकाबला  करने ,
अपनी  मंजिल  की  तलाश और  सपनो  को  हकीक़त  मैं  बदलने

पर  मंजिल  का कोई नाम हैं पता,
और    कोई  ख़त  मिला  हैं  जिसके  बह्रोंसे वह रास्ते  मिल  जाते

बस अपनी  ही  धुंद  मैं,
सारी दुनिया पे अपनी चाप छोड़ने,
निकल  पड़ी  हैं  वह !!

अभी भी, एक तितली  की जैसी हैं वह

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