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Monday 29 October 2012

काश! ... Entry by Prabhjot Singh, IIM Rohtak

काश वक़्त पे चलता जोर कोई अपना
तो इसको भी थमने का फरमान कर देते
न जाने देते बचपन को इस तरह
पूरे अपने सरे अरमान कर लेते
भुला के सारे गम नाचते बारिशों में
कागज़ की कश्तियों के हम कप्तान बन लेते
आज भी जीते ख्वाबों की दुनिया में
हकीकत से ज़रा अंजन बन लेते
हर गलती के बाद वो भोली सी सूरत
Sorry कह के हम भी नादान बन लेते
आंसू तो होते आँखों में लेकिन शिकवा कोई दिल में होता ना
हर हस्सी होती दिल से अपनी हर चेहरे की मुस्कान बन लेते
काश वक़्त पे चलता जोर कोई अपना
तो इसको भी थमने का फरमान कर देते...

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