रोज़ सुबह उठकर मैं अर्चना करता
प्रभु को प्रसन्न करने का प्रयास करता
विश्वकर्मा कभी आओ मेरी चौपाल
मुझे भी कभी दर्शन दो दीनदयाल
यही चाह लिए अंतर्मन में मैं रात को सो जाता
प्रभु का नाम मेरे कंठ में ही रह जाता
मैं कैसे मान लूँ प्रत्यक्ष होंगे हरिदर्शन
पर श्रद्धा और विश्वाश से टूटा एक रात अनिश्चितता का अनशन
प्रभु बोले :
क्या सोचकर ली तुने मुझे पाने की ठान
क्या मुझे पाना है इतना आसान
जब वातावरण में हो अन्धकार का घमासान
मैं हंसा और बोला :
मैंने की है आपकी बहुत पूजा अर्चना
अब तो मेरा हक़ है आपके दर्शन करना
मैं नहीं जानता किस प्रयोजनवश आपके मेरे घर आने का निर्णय लिया है
पर अब आप आ ही गए हैं तो मैंने आपसे प्रकृति का रहस्य जाने का निश्चय लिया है
प्रभु बोले
जीवन तो एक मिथ्या है एक भ्रान्ति है
मृत्यु ही प्रकृति का शाश्वत सत्य है
माँ के गर्भ में तुने ली थी एक सौगंध
मानवता की रह पर चलकर दूर करेगा जग की हर दुर्गन्ध
बालावस्था गृहस्थ संन्यास और वानप्रस्थ
यही थे तेरे जीवन के चार शाब्दिक अर्थ
बचपन तो था तेरे जीवननिर्माण की सुबह
पर महत्वकांषाओं के बोझ ने भटका दी तेरी राह
त्याग, बलिदान , प्रेम और ममत्व
कलियुग में मिट गया इन सबका अस्तित्व
यह सुनकर मैंने कहा :
मैं तो अदना सा मध्यमवर्गीय पुरुष हूँ
क्या जग परिवर्तन के मैं लायक हूँ
जग को बनाने बिगाड़ने जितना साहस कहाँ से लाऊँ
और मत कीजिये नाथ मुझे और लज्जित कहीं मैं शर्म से ही न मर जाऊँ
इस पर तो प्रभु का बस यही कथन था
मैं नहीं जानता तेरा प्रयास जग में कितना बदलाव ला पायेगा
पर जब मृत्योपरांत तेरा इतिहास लिखा जायेगा तो
तेरा नाम मानवता का विनाश करने वालों में नहीं
मानवता की विकास करने वालों में लिखा जायेगा
प्रभु की यह बात सुनकार मेरा शरीर कंपकपाने लगा
सकारात्मकता का इन्द्रधनुष मुझे दिखने लगा
वास्तव में वही है असली पूजा
जो जग निर्माण की दे तुम्हें ऊर्जा
एक वो दिन था और एक है आज का दिन ,कदम न मेरे कभी डगमगाए
और वही था एक दिन जब इश्वर मेरे घर आये !!
प्रभु को प्रसन्न करने का प्रयास करता
विश्वकर्मा कभी आओ मेरी चौपाल
मुझे भी कभी दर्शन दो दीनदयाल
यही चाह लिए अंतर्मन में मैं रात को सो जाता
प्रभु का नाम मेरे कंठ में ही रह जाता
मैं कैसे मान लूँ प्रत्यक्ष होंगे हरिदर्शन
पर श्रद्धा और विश्वाश से टूटा एक रात अनिश्चितता का अनशन
प्रभु बोले :
क्या सोचकर ली तुने मुझे पाने की ठान
क्या मुझे पाना है इतना आसान
जब वातावरण में हो अन्धकार का घमासान
मैं हंसा और बोला :
मैंने की है आपकी बहुत पूजा अर्चना
अब तो मेरा हक़ है आपके दर्शन करना
मैं नहीं जानता किस प्रयोजनवश आपके मेरे घर आने का निर्णय लिया है
पर अब आप आ ही गए हैं तो मैंने आपसे प्रकृति का रहस्य जाने का निश्चय लिया है
प्रभु बोले
जीवन तो एक मिथ्या है एक भ्रान्ति है
मृत्यु ही प्रकृति का शाश्वत सत्य है
माँ के गर्भ में तुने ली थी एक सौगंध
मानवता की रह पर चलकर दूर करेगा जग की हर दुर्गन्ध
बालावस्था गृहस्थ संन्यास और वानप्रस्थ
यही थे तेरे जीवन के चार शाब्दिक अर्थ
बचपन तो था तेरे जीवननिर्माण की सुबह
पर महत्वकांषाओं के बोझ ने भटका दी तेरी राह
त्याग, बलिदान , प्रेम और ममत्व
कलियुग में मिट गया इन सबका अस्तित्व
यह सुनकर मैंने कहा :
मैं तो अदना सा मध्यमवर्गीय पुरुष हूँ
क्या जग परिवर्तन के मैं लायक हूँ
जग को बनाने बिगाड़ने जितना साहस कहाँ से लाऊँ
और मत कीजिये नाथ मुझे और लज्जित कहीं मैं शर्म से ही न मर जाऊँ
इस पर तो प्रभु का बस यही कथन था
मैं नहीं जानता तेरा प्रयास जग में कितना बदलाव ला पायेगा
पर जब मृत्योपरांत तेरा इतिहास लिखा जायेगा तो
तेरा नाम मानवता का विनाश करने वालों में नहीं
मानवता की विकास करने वालों में लिखा जायेगा
प्रभु की यह बात सुनकार मेरा शरीर कंपकपाने लगा
सकारात्मकता का इन्द्रधनुष मुझे दिखने लगा
वास्तव में वही है असली पूजा
जो जग निर्माण की दे तुम्हें ऊर्जा
एक वो दिन था और एक है आज का दिन ,कदम न मेरे कभी डगमगाए
और वही था एक दिन जब इश्वर मेरे घर आये !!
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