तुमने सोचा मामूली सी आहें हैं
दब जाएँगी ,छुप जाएँगी ,चुप हो जाएँगी
अरे ये तो जननी की चीखें हैं
जो नवजीवन ना दे जब तक
यूँ ही तेरे कानों के पर्दों को हिलाएंगी
तुमने सोचा मेला है
बस दो दिनों का खेला है
खेल दिखारकर करतब वाला कल चला जायेगा
अरे ये तो महाभारत की लडाई है ..
धर्म विजयी न हो जब तक, युद्ध चलता जायेगा
तुमने सोचा पंखें की हवा है
जल्द ही सब को सुलायेगी ,
बस सपने दिखायेगी
अरे ये तो अन्ना की आंधी है
सोते को तो क्या ,मुर्दों को भी जगाएगी
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