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Wednesday 31 October 2012

फिर भी हर सीने में,ये दिल धडकता है! ... Entry by Tarun Sharma, IIM Rohtak

चुप हो गयी है जुबान, लब्ज खामोश है
रुक जाती है साँसे फिर भी ,ये दिल धड़कता है
कुछ कहने को मचलता है, कुछ सुनने को तड़पता है
फिर भी हर सीने में,ये दिल धडकता है

लाखो की भीड़ हो , या तनहइयो का समन्दर

ये कभी नहीं थमता, ये कभी नहीं रुकता
जिंदगी की दौड़ में,थक जाते है लोग अक्सर
बस इक दिल है जो ,कभी नहीं थकता

इस धड़कन की इक आवाज़ है, इक ख्वाहिश है अरमानो की

ये ख्वाहिश जो सुन लेता है, वो कहाँ मौत से डरता है
इस धड़कन की आवाज़ की, न कोई भाषा है न बोली है
बस दो अल्फाज़ समझता है , और उन्ही को गुनगुनाता है

फिर भी हर सीने ………….

दो लाब्जो की इस बोली में, जीने का एहसास झुपा है

फिर क्यों मर कर इस एहसास को, हर रोज मुसाफिर चलता है,
और ये दिल है जो हर सीने में जलता है.
जीना तो भूल गया इंसान, बस मरने को तड़पता है

और ये दिल है जो जीने की चाहत में आज भी हर सीने में धड़कता है ...

3 comments:

  1. mujhe bahaut khushi hui ki antatah yeh kavita sarvajanik roop se prakashit ki gayi.. :)

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  2. very nice tarun....gud words nice thought

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  3. samnaz sakta hu tere dard ko :(

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